निर्भीक कलम
डॉ पीतांबर दत्त बड़थ्वाल हिमालयन राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार में संस्कृत विभाग के तत्वावधान में श्रावणी पूर्णिमा के उपलक्ष्य में संस्कृत सप्ताह का शुभारंभ किया गया , जिसमें विभिन्न कार्यक्रमों, संस्कृत संभाषण ,गायन ,वादन , छंद परिचय ,संधि परिचय इत्यादि के द्वारा संस्कृत विषय का छात्र छात्राओं को ज्ञान कराया जाएगा।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर डी एस नेगी , वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो एम डी कुशवाहा,आगंतुक महानुभाव संस्कृत भारती पौड़ी जनपद के संयोजक रमाकांत कुकरेती , प्रधानाचार्य कण्व घाटी इंटर कॉलेज कोटद्वार, खंड संयोजक कुलदीप मैंदोला ,संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ अरुणिमा मिश्रा ,विभागीय प्राध्यापक डॉ रोशनी असवाल, डॉ मनोरथ प्रसाद नौगाई तथा डॉ प्रियम अग्रवाल द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया।
इसी क्रम में संस्कृत विभाग के छात्र छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना तथा स्वागत गीत के द्वारा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया। पारंपरिक औपचारिकताओ के अंतर्गत बैज अलंकरण तथा नवीन प्राचार्य प्रोफेसर डी एस नेगी का विभागीय प्राध्यापकों द्वारा पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया गया । स्वागतोपरांत विधि विधान पूर्वक वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ शिवार्चन अनुष्ठान किया गया। तत्पश्चात छात्र छात्राओं द्वारा वैदिक तथा लौकिक मंत्रों के साथ-साथ संस्कृत गीतों तथा श्लोको का भी गायन किया गया। तत्पश्चात शिवार्चन के माध्यम से प्रभु शिव की आराधना संपन्न हुई जिससे महाविद्यालय का संपूर्ण वातावरण शिवमय हो गया।
प्राचार्य प्रो डी एस नेगी ने अपने उद्बोधन में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृत समस्त भाषाओं की जननी है। उन्होंने सर्वे भवंतु सुखिनः , वसुधैव कुटुंबकम तथा कालिदास के अनेकों उदाहरण जैसे कविल्ठा नामक ग्राम, कण्व नगरी कोटद्वार में कालिदास द्वारा अभिज्ञान शाकुंतलम के सातों अंको का तथा चतुर्थ अंक को सर्वोत्तम बताते हुए छात्राओं को संस्कृत के प्रति प्रेरित किया ।
वनस्पति विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रोफेसर एम डी कुशवाहा महोदय ने अपने कथन में शिव की महिमा का गुणगान करते हुए संस्कृत विषय को सर्वोत्तम बताया तथा साथ ही उन्होंने स्वरचित कविता के माध्यम से शिवार्चन को “सुशोभित शिखर शशि वक्ररूपम ,चारु गंगा हुई शांताधारी , प्रियम शिवम पावन पार्वती ,अप्रतिम सदा जगत की उद्गामिनी ,सुशोभित शिखर शशि वक्ररूपम ,चारु गंगा हुई शांताधारी ”कहकर परिभाषित किया।
रमाकांत कुकरेती ने अपने उद्बोधन में संस्कृत सप्ताह दिवस पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताया कि संस्कृत भाषा अत्यधिक सरल है अतः इसका प्रचार प्रसार ग्रामे-ग्रामे, नगरे- नगरे, गेहे– गेहे करने के लिए हम सभी को प्रतिज्ञाबद्ध होना चाहिए।
कुलदीप मैंदोल ने अपने उद्बोधन में छात्र छात्राओं को संस्कृत संभाषण करने की प्रेरणा देते हुए कठिन से सरल की ओर जाने की प्रेरणा देते हुए उदाहरण “कौन-कौन जाता है” सहित निर्देशित किया । उन्होंने संस्कृत को प्राचीन, देव वाणी भाषा कहकर आगे बढ़ानेकी प्रेरणा दी।
विभाग प्रभारी डॉक्टर अरुणिमा ने अपने वक्तव्य में संपूर्ण जगत शिवमय है कहकर शिवार्चन की भूरी-भूरी प्रशंसा की और कहा कि श्रावण मास में शिवार्चन करना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है। “त्यागो हि महताम् पूज्य: सद्य: मोक्ष मयो यत:” कहकर भारतीय संस्कृति त्याग एवं तप की संस्कृति है और त्याग में परम वैभव की संपन्नता का भाव समाहित है।
डॉ रोशनी असवाल ने अपने वक्तव्य में छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि वैदिक काल से ही श्रावणी पूर्णिमा पर बालकों का उपनयन संस्कार सम्पन्न कर उन्हें विद्यारंभ हेतु गुरुकुल में भेजा जाता था। वर्तमान समय में भी मठों और गुरुकुल पद्धतियों में यह परंपरा व्याप्त है ,और सभी संस्कृतानुरागी संस्कृत दिवस मनाते हैं ,साथ ही चंद्रयान का उदाहरण देते हुए उन्होंने संस्कृत तथा विज्ञान का समन्वय के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
डॉ प्रियम अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में शिवार्चन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए या सृष्टि: सृष्टुराद्या कहकर अष्टमूर्ति शिव द्वारा समस्त सृष्टि के परिचालक को सत्यम शिवम् सुंदरम द्वारा परिभाषित किया।
इसी क्रम को आगे बढ़ते हुए प्रथम दिवसीय प्रथम सत्र में शिवार्चन तथा द्वितीय सत्र में छात्र छात्राओं को छंद गायन का परिचय दिया गया।
कार्यक्रम का संचालन विधिवत रूप से संस्कृत विभाग प्राध्यापक डॉक्टर मनोरथ प्रसाद नौगाई जी द्वारा सुसंपन्न कराया गया और साथ ही शिवार्चन कार्यक्रम में पूजन अर्चन की प्रक्रिया भी आपके द्वारा ही संपन्न कराई गई।
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